Sunday, 15 January 2017

शाख़ की हरी पत्तियां पीली पड़ चुकी हैं


शाख़ की हरी पत्तियां पीली पड़ चुकी हैं
तेरी राह तकते-तकते,

उन लम्हों की यादें फीकी पड़ चुकी हैं
तेरा इंतज़ार करते-करते

बरसो बरस बीत गए मुलाकात न हुई यार,
अब तो आँसू भी थक गए हैं, तेरे लिए बहते-बहते

अक्सर तेरी याद में ऐ दोस्त, कुछ लिख लिया करते थे
मगर अब तो क़लम भी रो पड़ी हैं, लिखते-लिखते

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हम तो बस तुमसे मिलने के दिन गिना करते थे
लेकिन अब तो उँगलियाँ थक गयीं, गिनते-गिनते

शाख़ की हरी पत्तियां पीली पड़ चुकी हैं,
तेरी राह तकते-तकते

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